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Channel: p4poetry » Preeti Datar
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प्रेरणा का पुल

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ऐसा नहीं है की मैं लिखना नहीं चाहती

पर चाहने और लिखने  के बेच जो

प्रेरणा का पुल बंधा हुवा है

उसे पार करने से डरती हू

 

वोह कहते है ना –

‘सोच’ कभी हकीकत में बदल जाती है

छोटी सी चिंगारी भी आग लगा जाती है

उस आग के  परिणाम  से डरती हू

 

ये उची दीवार देख रहे हो?

बहुत मेहनत से खड़ी की है

दीवार के आड़ में बैठी

प्रेरणा को कूट-कूट कर

आग में कई बार जल-जल कर

मैं लिख रही हू-

 

“तुम्हे”

“मुझे”

“हमे”

 

कहीं तुम देख न लो….

 

—————————-

I guess I had to re-start, somewhere :)


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